उत्तराखण्ड

मूल निवास समर्थन रैली में उमड़ा जन सैलाब, जनता की उम्मीदों पर मुहर लगाकर क्या सीएम धामी रचेंगे अब इतिहास!

देहरादून: उत्तराखंड में मूल निवास 1950 के आधार पर लागू करने की मांग को लेकर आज राजधानी देहरादून के परेड ग्राउंड से लेकर शहीद स्मारक तक बड़ी तादाद में लोग पहुंचे और मूल निवास समर्थन रैली को अपना समर्थन दिया। आम लोगों के हम से स्पष्ट नजर आता है कि उत्तराखंड में मूल निवास 1950 के तहत लागू करने की भावनाएं आम जनता व्यक्त कर रही है। साथ ही सशक्त भू कानून की भी मांग उत्तराखंड की आम जनता करती हुई आज की रैली में नजर आई।

रैली में हजारों की संख्या में पहुंचे युवाओं मातृशक्ति और बुजुर्गों की जुबान पर सशक्त भू कानून और 1950 को आधार मानते हुए मूल निवास को लागू करने की मांग थी। खास बात यह है कि रैली में जिस तरीके से आम लोग पहुंचे और जो उत्साह लोगों में दो महत्वपूर्ण मांगों को लेकर देखा जा रहा था उससे स्पष्ट है कि सरकार को भी अब सोचने पर विवश होना पड़ेगा कि, आखिरकार प्रदेश की जनता की जन भावनाएं सशक्त भू कानून और मूल निवास को लेकर क्या कुछ है। हालांकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा जहां सशक्त भू कानून को लेकर पहले एक कमेटी का गठन किया गया था जिसकी रिपोर्ट सरकार को प्राप्त हो गई है। इसका परीक्षण के लिए भी एक कमेटी का गठन किया गया है। साथ ही वही परीक्षण कमेटी मूल निवास को लेकर भी परीक्षण करेगी कि, आखिरकार मूल निवास को लेकर क्या कुछ सुझाव हो सकते हैं।

कुल मिलाकर धामी सरकार के द्वारा गेंद फिलहाल कमेटी के पाले में दोनों मुद्दों को लेकर फेंक दी गई है। ऐसे में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जिस तरीके से जन भावनाओं का सैलाब मूल निवास और सशक्त भू कानून को लेकर देखने को मिल रहा है, ऐसे में क्या सरकार लोकसभा चुनाव से पहले सशक्त भू कानून और मूल निवास को लागू करेगी या फिर दोनों मुद्दों पर जो कमेटी गठित की गई है उसके हवाले दोनों मुद्दों को कर लोकसभा चुनाव में जाती है, यह देखना होगा। लेकिन इतना तय है कि जिस तरीके से जन भावनाएं मूल निवास और सशक्त भू कानून को लेकर उमड़ रही है, उससे साफ संकेत है उत्तराखंड के लोग जिस तरीके से राज्य आंदोलन की लड़ाई को लड़ने के लिए तैयार उसे समय देखे जा रहे थे तो उसी तरीके से मूल निवास और सशक्त भू कानून की लड़ाई लड़ने के लिए भी तैयार नजर आ रहे हैं। यानी कि अगर सरकार जल्द जन भावनाओं के अनुरूप दोनों मामलों पर जन भावनाओं की अनुरूप फैसला नहीं लेती है तो फिर यह लड़ाई लंबी चल सकती है।

विपक्ष जनभावनाओं के साथ

मूल निवास और सशक्त भू कानून को लेकर जो आवाज आम लोगों की तरफ से उठी है, उसको भारी समर्थन मिलता हुआ नजर आ रहा है। सोशल मीडिया की बात करें या तमाम राजनीतिक दलों की बात करें तो जो विपक्ष में राजनीतिक दल है वह भी आज मूल निवास समर्थन रैली में पहुंचकर संकेत दे चुके हैं कि, विपक्षी दल दोनों मुद्दों पर जन भावनाओं के साथ है। ऐसे में सरकार के लिए दिक्कतें इस बात को लेकर भी है कि जनता के साथ तमाम विपक्षी दल इस मुद्दे पर कम से कदमताल मिलाते हुए नजर आ रहे हैं।

सीएम धामी से बड़ी उम्मीदें, क्या रचेंगे इतिहास!

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कई मौकों पर इतिहास रच चुके हैं तो कई मौके पर इतिहास रचने जा रहे हैं। महिला आरक्षण पर जिस तरीके से हाई कोर्ट के आदेश के बाद ही रोक लगी थी, उस पर धामी सरकार के द्वारा महिला आरक्षण को लेकर कानून बना दिया गया है। वही मूल निवास के मुद्दे पर भी हाईकोर्ट के द्वारा ही 2012 में फैसला सुनाया गया था और उस वक्त के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के द्वारा इस पर सरकार के द्वारा कोई निर्णय नहीं लिया गया था, जिसकी आज आलोचना भी हो रही है। आखिरकार उस समय की सरकार यदि इस समय की धामी सरकार की तरह होती तो इस मामले में कानून बनाकर दावा मजबूत कर देती या फिर हाई कोर्ट के फैसले को चैलेंज करती, तो मूल निवास उत्तराखंड में अनिवार्य रूप से आज भी लागू होता और आज लोग सड़कों पर न उतरते। इसीलिए अब सारी उम्मीदें उत्तराखंड की जनता की मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पर भी टिक चुकी है, क्योंकि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जन भावनाओं के अनुरूप फैसला लेने का मादा रखते हैं। चाहे वह फिर महिला आरक्षण का मामला हो या फिर चिन्हित राज्य आंदोलनकारी को आरक्षण देने का मसला हो, जो हालांकि अभी विधानसभा के विशेष सत्र से पास होना बाकी है। लेकिन इतना तय है कि अगर धामी ने ठान लिया कि उत्तराखंड में मूल निवास लागू होना चाहिए तो फिर उसे कोई नहीं रोक सकता है। इसलिए देखना होगा कि बतौर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जो जन भावनाएं प्रदेश की जनता की उमड़ रही है उस पर क्या कुछ निर्णय लेते हैं।

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