उत्तराखण्ड

भू कानून पर मुख्यमंत्री की घोषणा को कांग्रेस ने बताया चुनावी शिगुफा

देहरादून। नए साल में बाहरी लोगों के द्वारा कृषि भूमि खरीदने पर रोक लगाने की मुख्यमंत्री की घोषणा पर उत्तराखंड कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने इसे चुनावी शिगुफा बताया हैै। माहरा ने कहा कि राज्य गठन के बाद पहली निर्वाचित कांग्रेस की सरकार के  तत्कालीन मुख्यमंत्री  स्व० नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में राज्य हित में व्यापक चर्चा के बाद भू कानून के मसले को हल कर दिया था। जिसके अनुसार कोई भी बाहरी व्यक्ति राज्य में केवल 500 वर्ग ही जमीन खरीद सकता था।
माहरा  ने कहा कि खण्डूरी सरकार ने इसे 250 गज कर दिया था परन्तु भाजपा की त्रिवेन्द्र सरकार ने 2018 में उत्तराखण्ड जमींदारी विनाश अधिनियम में संशोधन कर दिया था जिसका जमकर दुरूपयोग हुआ। कहा कि 2018 में सरकार ने भूमि अधिानियम में जो संशोधन किये हैं उसे धामी सरकार को तत्काल निरस्त करना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि भाजपा ने हमेशा झूठ का रास्ता अपनाया है। वर्ष 2000 से लेकर 2017 तक राज्य में जिसकी भी सरकार रही उसने राज्य की प्रस्तावित राजधानी गैरसेैंण/ भराड़ीसैंण में भूमि खरीद पर सख्त रोक लगा रखी थी, परंतु 2017 के बाद चुनी हुई भाजपा की सरकारों ने उसको तक नहीं बख्शा।
कहा कि भू काननू पर कमेटी पर कमेटी बनाकर राज्य की जनता को गुमराह करने की कोशिश की जा रही है। यदि मुख्यमंत्री की मंशा साफ है तो पहले जमींदारी विनाश अधिनियम में जो संशोधन किए गए हैं उन्हें हटाना जरूरी है। कहा कि आज उत्तराखंड का जनमानस उद्वेलित है। उत्तराखंड ही एकमात्र पर्वतीय हिमालय राज्य है, जहां राज्य के बाहर के लोग पर्वतीय क्षेत्रों की कृषि भूमि, गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए खरीद रहे है।
 उन्होंने कहा कि 09 नवंबर 2000 को उतराखंड अलग राज्य बनने के बाद से अब तक भूमि से जुड़े कानून में कई बदलाव किए गए हैं और उद्योगों का हवाला देकर भू खरीद प्रक्रिया को आसान बनाया गया है। देश के कई राज्यों में कृषि भूमि की खरीद से जुड़े सख्त नियम हैं। पडोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी कृषि भूमि के गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए खरीद बिक्री पर रोक है।
कहा कि राज्य के कुल क्षेत्रफल (56.72 लाख हे.) का अधिकांश क्षेत्र वन है, जिसका कुल भौगोलिक क्षेत्र का 63.41% है, जबकि कृषि योग्य भूमि बेहद सीमित, 7.41 लाख हेक्टेयर (लगभग 14%) है। आजादी के बाद से अब तक राज्य में एकमात्र भूमि बंदोबस्त 1960 से 1964 के बीच हुआ है। इन 50-60 सालों में कितनी कृषि योग्य भूमि का इस्तेमाल गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए किया गया है, इसके आंकड़े संभवतः सरकार के पास भी नही है।
कहा कि राज्य की सीमित कृषि योग्य भूमि का इस्तेमाल ही बुनियादी ढांचे के विकास के लिए हुआ।  “तराई में खेती की जमीन पर उद्योग आए। शहरीकरण हुआ। पहाड़ों में जिला मुख्यालय, शिक्षण संस्थान, सब श्रेष्ठ कृषि भूमि पर बने। टिहरी बांध की झील से पहले भिलंगना और भागीरथी की घाटियां बेहद समृद्ध कृषि भूमि थीं, जो टिहरी बांध झील का हिस्सा बन गईं।
कहा कि धामी सरकार ने भी एक तरफ कानून में ढील दी, वहीं भू-सुधार के लिए एक समिति भी गठित की । इस समिति ने वर्ष 2022 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। जिसमें सख्त भू कानून लाने के लिए सुझाव दिए गए। लेकिन इस रिपोर्ट के बाद अब तक कुछ बदला नहीं है।
कहा कि धामी सरकार का यह फैसला ऐसे वक्त पर आया है जब बचाने के लिए उत्तराखंड में कुछ बचा ही नहीं है। ज्यादातर कृषि भूमि भूमाफियाओं के द्वारा खुर्दबुर्द की जा चुकी हैंं। ऐसे में यह घोषणा आगामी होने वाले आम चुनाव के मध्य नजर सिर्फ चुनावी पुलाव ही नजर आती है।

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