उत्तराखण्ड

इलिजारोव तकनीक के जरिए बेस अस्पताल में हुई विशेष सर्जरी

डॉ. पाठक बोले, इलिजारोव तकनीकी से मरीज के पैर की  हड्डी पुनः पहले जैसी होगी तैयार

आयुष्मान के जरिए मरीज को दी जा रही नि:शुल्क सुविधा

श्रीनगर। रुद्रप्रयाग जिले के खांखरा निसणी गांव के एक व्यक्ति के पैर पर जंगल में गिरने से चोट लग गई थी, जिससे उसके पैर की दो हड्डी (टिबिया एवं फिबुला) चोट लगने से चूर-चूर हो गई थी और पैर में घाव था जिसके लिए एक्सटर्नल फिक्सेटर लगाया गया और बाद में प्लास्टिक सर्जरी करी गयी।  घाव ठीक हो गया परंतु हड्डी में गैप रह गया।

हड्डी में गैप आने के साथ दो-तीन इंच हड्डी खराब हो गयी थी, किंतु बेस चिकित्सालय के हड्डी रोग विभाग के विशेषज्ञ डॉ. ललित पाठक ने मरीज का सफल ऑपरेशन कर इलिजारोव तकनीकी से मरीज के पैर की हड्डी बढ़ाने का काम किया जा रहा है।

डाक्टरों की माने तो दो से तीन माह में हड्डी बढ़ने के बाद मरीज चलने लायक हो जायेगा। मरीज विगत एक साल से परेशान था। बेस अस्पताल में मरीज को आयुष्मान के जरिए नये तकनीकि से इलाज नि:शुल्क मिला है। यह इलाज आमतौर पर प्राइवेट अस्पताल में एक से दो लाख के बीच होता है।

बेस अस्पताल के हड्डी विभाग में निसणी गांव के भर्ती धीरेन्द्र बिष्ट ने बताया कि विगत वर्ष अक्तूबर माह में गांव के जंगल में घिर गया था, जिससे हड्डी टूट गई और घाव हो गया। जिसका इलाज कराया, किंतु कोई राहत नहीं मिली। जिसके बाद बेस चिकित्सालय में पहुंचा तो हड्डी विभाग के डॉ. ललित पाठक द्वारा इलाज का भरोसा दिया। इलाज करने पर पुरानी हड्डी निकाली गई और नयी हड्डी विकसित करने की तकनीकि के जरिए इलाज चल रहा है। जिसमें एक्सरे कर हड्डी बढ़ती दिख रही है।

उन्होंने अस्पताल में आयुष्मान से नि:शुल्क इलाज मिलने पर प्रदेश सरकार एवं डॉक्टरों का आभार प्रकट किया है। मरीज के इलाज में डॉ. पाठक के साथ हड्डी विभाग से डॉ. हिमानी, डॉ. मानसी, डॉ. शंशाक, डॉ. अभिषेक के साथ एनेस्थिसिया विभाग के एचओडी डॉ. अजेय विक्रम सिंह, डॉ. प्रीती, डॉ. प्रियंका में सहयोग दिया।

बेस अस्पताल के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. ललित पाठक ने कहा कि मरीज ने बताया कि पूर्व में इलाज कराया था और प्लास्टर लगाने के बाद हड्डी जुड़ी नहीं थी और हड्डी में गैप आ गया था, जबकि मरीज की दो-तीन इंच हड्डी खराब हो गयी, जिससे निकाला गया और इलिजारोव तकनीकी से हड्डी के गैप को खत्म कर  हड्डी की लंबाई को बढ़ाया जा रहा है। दो से तीन माह बाद उक्त तकनीकी से नई हड्डी तैयार हो जायेगी और मरीज चलने लगेगा।

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