उत्तराखण्ड

उत्तराखंड लोक विरासत के जरिए स्थानीय उत्पादों को दिया जायेगा बढ़ावा: डा.जोशी

लोक विरासत का आयोजन दो और तीन दिसंबर को होगा

देहरादून। राज्य के पारंपरिक वाद्ययंत्रों को बढ़ावा देने और उत्तराखं की संस्कृति, कलाकारों को उचित प्लेटफार्म उपलब्ध कराने के लिए राजधानी में उत्तराखंड लोक विरासत का आयोजन किया जा रहा है। इस बार राज्य के विभिन जिलों के रीजनल ड्रेसों का प्रदर्शन भी किया जाएगा। लोक विरासत का आयोजन आगामी 2 और 3 दिसंबर को हरिद्वार बाईपास स्थित सोशल बलूनी स्कूल में किया जाएगा।

आज प्रेस क्लब में चारधाम अस्पताल के निदेशक डॉ केपी जोशी ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए बताया कि उत्तराखंड लोक विरासत कराने के पीछे उनका मकसद राज्य के कलाकारों को उचित प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराना है। बताया कि पर्वतीय क्षेत्रों में रिंगाल की टोपी काफी प्रचलित है। इस उत्पाद को शहरों में बढ़ावा देकर गांव के लोगों को रोजगार से जोड़ा जा सकता है।

कहा कि ऐसी कलाओं और कलाकारों को आगे मंच देने का प्रयास है।  जिन्हें लोग जानते नहीं है। जैसे संगीत, नृत्य, ढोल से जुड़े कलाकारों को मंच देकर रोजगार से जोड़ना है। लोक विरासत में पहाड़ के लोक गीत, वाद्य यंत्रों का प्रदर्शन होगा। विलुप्त होती कला को आगे बढ़ाने का काम किया जा रहा है। कार्यक्रम का मकसद नई पीढ़ी को उत्तराखंड की संस्कृति से जोड़ना है।

कहा कि कलाकारों के हुनर को बाजार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लोक विरासत का आयोजन किया जा रहा है। पहाड़ से पलायन रोकने का भी मकसद है। पुराने उत्तराखंड के संगीत को आगे लाना है। लोक विरासत में हर्षिल से लेकर धारचूला तक रिजनल ड्रेस का प्रदर्शन किया जाएगा। उत्तराखंड लोक महात्सव में पहाड़ी व्यंजनों का स्टॉल भी लगाया जायेगा। और हस्तशिल्प प्रदर्शनी भी लगेगी। आगामी 2 और 3 दिसम्बर को होने वाले लोक विरासत में संगीत संध्या भी आयोजित की जायेगी।

डा. जोशी ने बताया कि लोक गायकार नरेंद्र सिंह नेगी, प्रीतम भरतवाण, मीना राणा, संगीता धौंडियाल, गौरव मैठाणी आदि लोक विरासत में शिरकत करेंगे। वहीं उद्योग विभाग के पूर्व निदेशक सुधीर नौटियाल ने बताया कि अलग-अलग जनपदों में अलगज्ञअलग लोक कला है। ऐसे में एक मंच में सभी जनपदों की लोक संस्कृति देखने को मिलेगी।

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